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उसका दोष क्या है भाग - 19 15 पार्ट सीरीज





उसका दोष क्या है (भाग-19)

             कहानी अब तक 
   विद्या और सनोज कोलकाता से विवाह के बाद एक सप्ताह का हनीमून मना कर वापस लौटते हैं l
                    अब आगे
सनोज ने कोलकाता जाने के पहले ही भाड़े में घर ले लिया था, जहां कोलकाता से वापस आकर वह दोनों रह रहे थे l घर गृहस्थी की थोड़ी बहुत आवश्यक सामग्री की व्यवस्था सनोज पहले से ही करके गया था, इसलिए कोई परेशानी नहीं हुई | वापस आने के बाद सनोज अपने घर नहीं गया था |
अगले दिन सनोज ने कार्यालय में योगदान दिया और विद्या भी अपने स्कूल गई l स्कूल में पता चला रमेश उसे खोजने आया था l सभी सहयोगी शिक्षक शिक्षिकाएं उससे पूछने लगे - "वह कहां चली गई थी, रमेश बहुत परेशान था, वहां खोजने आया था, उसके मायके से भी खोज कर आया है, वह मायके में भी नहीं थी, आखिर कहां चली गई थी"? 
इधर उधर की कुछ बात कह ऐसे अनगिनत प्रश्न को उसने टाल दिया और क्लास करने चली गई l
विद्यालय से अवकाश के बाद जब वह बाहर निकली, रमेश उसकी प्रतीक्षा कर रहा था l उसका हाथ पकड़ कहने लगा - 
    "विद्या कहां चली गई थी तुम,मैं कितना परेशान रहा इस पूरे सप्ताह तुम्हें लेकर l मैं ही नहीं तुम्हारे मां-बाबा भी परेशान थे l वे भी बहुत बेचैन हैं तुमसे मिलने के लिए l चलो पहले हम उनसे मिलकर फिर घर चलेंगे"|
  विद्या - "मुझे तुम्हारे साथ नहीं जाना कहीं l मैं मां बाबा से जाकर स्वयं मिल लूंगी l मेरा तुमसे अब कोई संबंध नहीं है l तुम संगीता के साथ खुश रहो l मैं नहीं जाऊंगी, तुम्हारा अपना पूरा परिवार है, मेरा वहां क्या है, तो मैं क्यों जाऊं वहां"?
  रमेश - "ऐसा क्यों कह रही हो, सब कुछ तुम्हारा ही है, मैं तुम्हारा हूं, बच्चे भी तो तुम्हारे हैं, बाबू से मिलने की तुम्हारी इच्छा नहीं होती है ? बाबू तुम्हें कितना याद करता है | चलो घर चलो"|
विद्या - "कहा न मैं नहीं जाऊंगी | मेरा कुछ भी नहीं है वहां | वैसे भी मैं अब तुम्हारी पत्नी नहीं रही, किसी और की पत्नी बन चुकी हूं, मैंने विवाह कर लिया है"|
रमेश आश्चर्यचकित हो उठा -  
   "क्या कह रही हो, तुम.... तुम ऐसा कैसे कर सकती हो ? तुम दूसरा विवाह कैसे कर सकती हो ? मैं तुम्हारा पति हूं, अभी मैं हूं, मेरे रहते तुम दूसरा विवाह नहीं कर सकती"|
  विद्या - " क्यों तुमने भी तो संगीता के रहते किया था दूसरा विवाह l मेरी और तुम्हारे विवाह की कोई वैधानिकता कहां है l समाज और कानून की दृष्टि में तुम्हारी पत्नी नहीं रक्षिता हूं मैं, तो मैं दूसरा विवाह क्यों नहीं कर सकती"?
  रमेश - " किस से विवाह किया तुमने, कौन है तुम्हारा पति ? कौन ऐसा इंसान है जो एक विवाहिता स्त्री से विवाह कर सकता है"? रमेश उसे झिंझोड़ते हुए बोला l
   विद्या ने उसका हाथ झटक कर अपने को अलग किया, और वहां से निकल गई बिना कोई प्रत्युत्तर दिये l रमेश उसे पुकारता रह गया l रिक्शा में बैठकर उसने पलट कर देखने का भी प्रयास नहीं किया, रमेश उसके पीछे आ रहा है या वहीं खड़ा है l
रमेश एक और रिक्शा लेकर उसका पीछा करते हुए उसके घर तक पहुंच गया l और वहां उसकी भेंट हुई सनोज से l उसे देखकर पूछा - "विद्या क्या यही है तुम्हारा पति"?
   विद्या - " हाँ यही हैं मेरे पति l हम दोनों ने विवाह किया है और अब तुम्हारा यहां कोई काम नहीं है, तुम यहां से जा सकते हो"|
  परन्तु क्रोध में उन्मत्त हो उसने सनोज के साथ हाथापाई शुरू कर दी l सनोज ने कठिनाई से अपने को मुक्त किया और कहा - "देखिये, आप यहाँ तमाशा नहीं करें, सुना नहीं विद्या ने क्या कहा ?आप वापस चले जाएं l आपका विद्या पर कोई अधिकार नहीं है l यदि आप मारपीट करेंगे तो हमें पुलिस थाने जाना होगा, विवश होकर पुलिस की सहायता लेनी होगी, फिर आप जेल में होंगे"|
  यह सुन रमेश की आंखें चमकने लगीं l उसे तो ध्यान ही नहीं था, पुलिस स्टेशन तो वह भी जा सकता है | वहाँ से निकला और अपने कुछ मित्रों को लेकर सीधा पुलिस स्टेशन चला गया, और वहां उसने सनोज के विरुद्ध शिकायत वाद दर्ज करवा दी - "वह उसकी पत्नी को बहला-फुसलाकर भगा लाया है" |
इस "शिकायत वाद" के दर्ज होते ही पुलिस हरकत में आई और पहुँच गई सनोज को गिरफ्तार करने l
  परंतु यहां विद्या ने सनोज का साथ दिया और कहा उसने स्वेच्छा से सनोज से विवाह किया है l यहां हंगामे की स्थिति को देख पुलिस दोनों को लेकर थाना पहुंची l वहाँ समझौता का प्रयास किया गया l विद्या ने स्पष्ट कहा वह रमेश के साथ नहीं जाएगी, उसने स्वेच्छा से सनोज के साथ विवाह किया है, सनोज के साथ ही रहेगी l
"एक विवाहिता स्त्री कैसे दूसरा विवाह कर सकती है" - रमेश के इस तर्क को विद्या ने पल भर में यह कह समाप्त कर दिया - रमेश तो पूर्व से विवाहित है, संगीता के साथ उसके बच्चे भी हैं l ऐसी स्थिति में इनका विवाह वैध नहीं था, और बार-बार यही कहकर प्रताड़ना की जा रही थी उसकी कि वह रमेश की पत्नी नहीं रक्षिता है l ऐसी स्थिति में वह रमेश के साथ कैसे रह सकती है ?
और उसने रमेश पर घरेलू हिंसा का भी आरोप लगा दिया l ऐसी स्थिति में रमेश की स्थिति अपराधी सी हो गई और उसे विद्या को सनोज के पास ही छोड़कर वापस जाना पड़ा l विद्या और सनोज वापस फिर अपने घर आए l
  विद्या ने शांति की सांस ली, अब रमेश उसे परेशान नहीं करेगा, और वह सनोज के साथ सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत करेगी | हालांकि सनोज भी विवाहित है, परंतु उसकी पत्नी उसके माता पिता के साथ बच्चों को लेकर राँची रहती है l यहाँ दोनों का कार्यक्षेत्र है, इसलिये दोनों एक साथ रहेंगे, तो विद्या को इसमें कोई परेशानी नहीं है l
  सनोज की पत्नी को जब उसके दूसरे विवाह की जानकारी मिली, वह भी परेशान हो गई | उसने अपने मायके और ससुराल वालों के साथ मिलकर सनोज के कार्यालय में आवेदन दिया, उसके दूसरे विवाह को मान्यता नहीं दिया जाए | पुलिस थाना में भी एक आवेदन उसने दे दिया, साथ ही आकर उसने विद्या से लड़ाई भी की | उसे कितनी बातें सुना दी | विद्या खामोश होकर उसके प्रत्येक आरोप को सुनती रही, और कुछ भी जवाब नहीं दिया | वह समझ रही थी सनोज की पत्नी शिल्पा के प्रति अन्याय हुआ है, इसलिए उसका क्रोध में आना स्वाभाविक है | शिल्पा अपने दोनों छोटे बच्चों को लेकर उसके पास आकर गिड़गिराई l उसने शिल्पा को बहुत प्यार से समझाया
- "तुम चिंता क्यों करती हो तुम्हारे बच्चे तुम्हारे रहेंगे, मैं छीनूँगी नहीं उन्हें l तुम्हारे पति पर भी तुम्हारा उतना ही अधिकार रहेगा जितना पहले था l मैं उसे तुमसे मिलने से कभी मना नहीं करूंगी l तुम्हारा घर तुम्हारा ही है, मैं उस पर अधिकार जमाने कभी नहीं आऊंगी"|
परंतु इतना समझाने के बाद भी शिल्पा संतुष्ट नहीं हुई l वह रोती हुई वहां से अपने घर चली गई l अपने सास-ससुर से इस संबंध में उचित कार्यवाही करने का अनुरोध करने लगी l उसके सास-ससुर ने उसे सांत्वना दिया और धैर्य रखने की सलाह दी | उन्हें विश्वास था सनोज का प्रेम क्षणिक है, और वह अपने बच्चों को भूल नहीं सकता | उसके माता-पिता ने भी विद्या और सनोज के पास आकर उसे बहुत सी बातें समझाईं l विद्या ने उनका आदर सम्मान करते हुए अपने को पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करने का अनुरोध किया, और उनके पूरे परिवार की सेवा करने का वचन भी दिया l
  सनोज के माता-पिता उस समय तो वहां से चले गए परंतु वह अकेले में उससे मिलने का प्रयास करते रहे l एक बार अवसर देखकर सनोज के कार्यालय में मिले और उसे घर आने के लिए आदेश दिया l उसके प्रखण्ड विकास अधिकारी से मिलकर सनोज का वेतन उसकी पत्नी को देने का भी अनुरोध कर बैठे l सारी बात समझने के बाद अधिकारी ने सनोज को बुलाकर फैसला दिया - उसका तीन भाग वेतन उसकी पत्नी और बच्चों के पास जाएगा और एक भाग उसे मिलेगा l सनोज को इसमें कोई आपत्ति नहीं थी, वह खुशी-खुशी तैयार हो गया l उसने कहा -
"मैं तीन भाग क्या पूरा वेतन देने को तैयार हूँ"|
ससुर ने घर आकर शिल्पा को समझाया - 
   "अभी तो उसका वेतन लेकर संतोष करो, मेरा पूरा प्रयास रहेगा वह विद्या को छोड़ कर तुम्हारे पास आ जाए l अभी तुम्हारे पास आर्थिक समस्या नहीं आएगी, क्योंकि उसका तीन भाग वेतन तुम्हें मिल रहा है l तुम थोड़ा धैर्य रखो ईश्वर तुम्हारी सहायता अवश्य करेंगे"|
उन्होंने अपनी पुत्रवधू को बहुत सी बातें समझा कर धैर्य बँधाने का प्रयास किया l सनोज की माता बहुत दु:खी थी अपने पुत्र के इस कार्य से, और इस दु:ख की घड़ी में वह पूरी तरह से शिल्पा के साथ थी l
शिल्पा जब कभी थोड़ी भी दु:खी या उदास होती तो उसके सास-ससुर माता-पिता समान उसके दु:ख को हरने का प्रयास करते | यह बातें इधर उधर से छनकर विद्या और सनोज को भी पता चलती थी, इस पर सनोज की तो कोई प्रतिक्रिया नहीं होती परंतु विद्या अक्सर सोचती - काश उसके भी सास-ससुर ने उसका साथ दिया होता, उसके दु:ख की घड़ी में उसका सहारा बने होते | वह तो पूरी तरह से संगीता के साथ थे, जबकि विवाह के लिए वह बारात लेकर गए थे विद्या के घर, परंतु उन्होंने विद्या का साथ कभी नहीं दिया l
            कथा जारी है l
                                      क्रमशः
         निर्मला कर्ण

    

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2 Comments

Abhilasha Deshpande

05-Jul-2023 03:18 AM

Nice concept mam

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वानी

16-Jun-2023 07:20 AM

Nice

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